Skip to main content

तांत्रिक की वापसी : Ek Rahasya Jo Laut Aaya Hai

 






अध्याय 1: छूटा हुआ तावीज़

गाँव भैरवगढ़ हमेशा से रहस्यों से भरा रहा था, लेकिन पिछले कुछ सालों से वह शांति में डूबा हुआ था। समय जैसे थम गया था, जब से ‘पाली’ गाँव की घटनाओं ने सबको डरा कर रख दिया था। पर हर कहानी का एक छिपा हुआ सिरा होता है—और वही सिरा अब फिर से उभरने वाला था।

स्वरा, एक युवा इतिहासकार, पाली गाँव की घटनाओं पर रिसर्च कर रही थी। उसे रवि की बलिदान वाली कथा ने झकझोर दिया था। लेकिन वह केवल एक पाठ नहीं था—बल्कि एक संकेत था।

स्वरा को अपने दादा की पुरानी अलमारी में एक तावीज़ मिला—काला, धातु से बना हुआ, जिस पर अजीब चिह्न थे। उसी रात, उसने एक सपना देखा—एक मंदिर, एक चीख, और एक परछाई जो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।

अगली सुबह तावीज़ के चिह्न जल रहे थे। और तभी शुरू हुआ एक नया अध्याय।


अध्याय 2: जागते संकेत

स्वरा ने तावीज़ को लेकर अपने मित्र अनिरुद्ध से संपर्क किया। वह एक पुरातत्वविद् था और उसने कई बार श्रापित स्थलों पर काम किया था।

“यह तावीज़ केवल प्रतीक नहीं है,” अनिरुद्ध बोला, “यह एक मुहर है… किसी को बंद करने की।”

“लेकिन कौन? और क्यों?” स्वरा की आवाज़ काँप रही थी।

अनिरुद्ध ने एक पुरानी किताब निकाली, जिसमें भैरवगढ़ के पास स्थित एक गुफा का उल्लेख था, जिसे कभी तांत्रिकों ने सील किया था।

“पाली गाँव में जो हुआ, वह केवल एक चेतावनी थी,” उसने कहा। “असल खतरा अब जाग रहा है।”

और फिर, अचानक कमरे की बत्तियाँ झपकने लगीं। तावीज़ के चारों ओर धुआँ फैलने लगा। किसी ने बहुत धीमी, लगभग फुसफुसाती हुई आवाज़ में कहा—

“मेरा अनुष्ठान अधूरा रह गया था… अब मैं लौटूंगा।”


अध्याय 3: शापित इतिहास

स्वरा और अनिरुद्ध ने तय किया कि वे भैरवगढ़ जाएँगे। उनका साथ देने के लिए दो और लोग तैयार हुए—टीना, एक शोधकर्ता, और कुश, एक वीडियो डाक्यूमेंट्री मेकर।

गाँव पहुँचने पर उन्हें शुरू में सब सामान्य लगा। लेकिन बुजुर्गों से बात करने पर मालूम हुआ कि पिछले कुछ दिनों से मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते पर अजीब घटनाएँ हो रही थीं—जानवरों की लाशें, रात में जलती रोशनी, और हवा में आती किसी अनजानी प्रार्थना की आवाज़।

“यह सब पहले भी हुआ था,” एक बुजुर्ग बोला, “जब अनयक तांत्रिक को बंद किया गया था।”

अनिरुद्ध चौक गया, “अनयक? वही नाम पाली गाँव के ग्रंथों में भी था।”

स्वरा समझ चुकी थी कि वह पाली की घटनाओं से दूर नहीं, बल्कि उसी के एक और अध्याय की ओर बढ़ रही थी।

और फिर, रात के समय, तावीज़ ने फिर से चमकना शुरू किया। इस बार उसकी रोशनी सीधी जंगल की दिशा में जा रही थी—मानो वह किसी पुराने दरवाज़े को फिर से खोल रहा हो।

 

अध्याय 4: अधूरा अनुष्ठान

स्वरा और अनिरुद्ध अपनी छोटी सी टीम के साथ भैरवगढ़ के जंगलों की ओर निकले। उनके पास वही रहस्यमयी तावीज़ था, जो अनायास ही एक प्राचीन शक्ति को जगा चुका था। किताबों और स्थानीय बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार, वहाँ एक पुरानी गुफा थी जहाँ वर्षों पहले अनुष्ठान अधूरा रह गया था।

जंगल की शुरुआत में ही हवा भारी हो गई। हर कदम पर सरसराहट सुनाई देती, जैसे पेड़ कानाफूसी कर रहे हों।

“कुछ तो है यहाँ… जो हमें देख रहा है,” स्वरा ने धीमे स्वर में कहा।

अनिरुद्ध ने सिर हिलाया। “यह जंगल एक बार पहले भी किसी को निगल चुका है। चलो, और गहराई में चलते हैं।”

गुफा की दीवारों पर उन्हीं चिह्नों की छाया उभर आई, जो तावीज़ पर बने थे। अचानक तावीज़ में नीली चमक फूटने लगी। एक खंडहरनुमा दीवार सरक गई और एक अंधेरी सुरंग सामने आई।

स्वरा ने साँस थामी, और सबके साथ अंदर प्रवेश किया। वहीं से शुरू होती है एक नई त्रासदी।


अध्याय 5: आत्मा की दस्तक

सुरंग की गहराई में एक बड़ा सा कक्ष था, जिसे देख ऐसा लगा जैसे वर्षों से वहाँ कोई न आया हो, लेकिन उसकी दीवारें अब भी गर्म थीं — जैसे अभी-अभी वहाँ कुछ जागा हो।

स्वरा ने तावीज़ को एक गोलाकार रेखा के मध्य रखा। अचानक वहाँ कंपन शुरू हो गया। हवा ठंडी पड़ने लगी और दीवारों पर चढ़े चिह्न खुद-ब-खुद चमकने लगे।

एक विकराल छाया हवा में तैरती हुई सामने आई। लाल आँखें, धुएँ जैसे बाल, और गूँजती आवाज़—

“स्वरा… तुम आखिर आ गई।”

स्वरा का चेहरा पीला पड़ गया, “क-कौन हो तुम?”

“मैं… वही जिसे बंद किया गया था… अनयक।”

स्वरा चीख पड़ी। अनिरुद्ध ने तुरंत मंत्र पढ़ना शुरू किया। पर जैसे-जैसे मंत्र बढ़ता गया, वह छाया और ताकतवर होती गई। टीम के दो लोग हवा में उछलकर दीवार से जा टकराए।

अनयक अब अधूरी आत्मा नहीं रहा, वह धीरे-धीरे पूरे शरीर में उतरने लगा था।


अध्याय 6: टूटी साँकलें

अनिरुद्ध ने जब देखा कि मंत्र काम नहीं कर रहे, उसने सभी को पीछे हटने का आदेश दिया। वे भागकर सुरंग के बाहर पहुँचे।

स्वरा ने थरथराती आवाज़ में कहा, “यह तावीज़… यह सिर्फ उसे कैद नहीं करता। ये उसे माध्यम देता है जागने का।”

“तो इसका मतलब, हम उसे जगाने आए थे?” अनिरुद्ध हैरान था।

स्वरा ने सर हिलाया। “और उसे किसी शरीर की ज़रूरत है। अगर हमने उसे रोका नहीं… वो इस दुनिया में पूरी तरह उतर जाएगा।”

तभी जंगल में अचानक आग जैसी रोशनी फैलने लगी। एक छाया हवा में ऊपर उठ रही थी — यह कोई और नहीं, टीम का सदस्य कुश था, जिसकी आँखें अब पूरी तरह सफेद हो चुकी थीं।

“स्वागत करो अनयक के नए शरीर का,” कुश की आवाज़ गूंजने लगी।


अध्याय 7: अपवित्र अनुष्ठान

कुश, अब अनयक के अधीन, जंगल की ही एक गुप्त जगह की ओर बढ़ा, जिसे भैरव कुंड कहा जाता था — एक स्थान जहाँ आत्माओं का बंदन संभव था या उन्हें अनंत शक्ति मिल सकती थी।

अनिरुद्ध और स्वरा, कुछ बचे हुए साथियों के साथ उसका पीछा करते हैं।

“हमें उसे रोकना होगा,” स्वरा बोली, “अगर अनयक भैरव कुंड तक पहुँच गया, तो उसे कोई नहीं रोक सकता।”

रास्ते में उन्हें मरे हुए पक्षियों की लाशें, पेड़ों से लटकी उलटी लाशें और जले हुए पेड़ों की गंध मिली। पूरा जंगल जैसे चेतावनी दे रहा था।

आखिरकार, वे कुंड के पास पहुँचे। वहाँ कुश मंत्र पढ़ रहा था, और नीले प्रकाश में उसकी परछाई अनायास ही विकराल हो रही थी।

स्वरा ने चीखकर कहा, “कुश! तुम अभी भी खुद हो! रुक जाओ!”

पर आवाज़ आई — “कुश अब नहीं रहा। केवल मैं हूँ… अनयक।”


अध्याय 8: समर्पण और साज़िश

स्वरा जान चुकी थी कि कुश को छुड़ाना अब असंभव है। लेकिन तभी एक चौंकाने वाला रहस्य खुला।

अनिरुद्ध ने स्वीकार किया — “मैंने ही अनयक के अनुष्ठान का जिक्र किया था। मुझे लगा हम इतिहास खोज रहे हैं… लेकिन मैं अनजाने में उसके जागरण का हिस्सा बन गया।”

स्वरा पीछे हट गई। “तुमने हमें धोखा दिया?”

“नहीं! मैं भी नहीं जानता था कि ये इतना गहरा है…”

अब कुश/अनयक अपने अनुष्ठान के अंतिम चरण में था। जैसे ही उसका अंतिम मंत्र पूरा होने वाला था, स्वरा ने एक झटका दिया — उसने तावीज़ की एक और शक्ति का उपयोग किया: आत्मा विभाजन

अब अनयक की आत्मा तीन भागों में बँट गई — शरीर, शक्ति और चेतना। शरीर कुश में, शक्ति जंगल में, चेतना तावीज़ में कैद।

लेकिन यह स्थायी नहीं था। तावीज़ अब टूटने की कगार पर था।


अध्याय 9: अंतिम विराम

स्वरा ने तय किया कि वह चेतना वाले हिस्से को तावीज़ के साथ एक बार फिर एक बंदी कक्ष में छिपा देगी — लेकिन अबकी बार वह अकेली नहीं थी।

एक जानी-पहचानी परछाई उनकी ओर आई — राघव, जो पहले ‘पाली’ गाँव में बचा था।

“रवि की आत्मा अब भी अनयक की चेतना को रोक रही है,” राघव बोला। “तुम्हें उसकी मदद चाहिए।”

स्वरा ने तावीज़ को रवि की राख के पास रखा और एक अंतिम मंत्र पढ़ा। एक तेज़ प्रकाश के साथ चेतना तावीज़ में समा गई, और तावीज़ खुद एक चट्टान में बदल गया।

कुश बेहोश पड़ा था। जंगल शांत था। पर हवा में अनयक का अंतिम वाक्य गूंजा:

“मैं हमेशा तीन हिस्सों में जिंदा रहूँगा… शरीर, शक्ति, चेतना… तुम तीनों को कभी एक नहीं होने देना…”


अध्याय 10: कभी न खत्म होने वाली कहानी

अब महीनों बाद, स्वरा दिल्ली में एक नई टीम बना चुकी थी। तावीज़ अब एक गहरे बंकर में छुपा था। कुश अब भी कोमा में था।

लेकिन एक नई घटना सामने आई — एक गाँव में बच्चे अजीब-सी भाषा बोलने लगे थे, जिनके उच्चारण पुराने मंत्रों से मिलते थे। एक बच्चा, बिना सिखाए, ‘अनयक’ नाम दोहराने लगा।

स्वरा ने उस गाँव की रिपोर्ट बंद की और बुदबुदाई, “कहानी खत्म नहीं हुई… यह अब एक चक्र है।”

कांच की अलमारी में पड़ा तावीज़ अब भी हल्की नीली चमक दे रहा था… और जंगल की ओर बहती हवा में एक फुसफुसाहट थी…

“शुरुआत वहीं होगी… जहाँ तुमने अंत समझा था।”

Comments

Popular posts from this blog

भूले हुए मंदिर का श्राप

  अध्याय 1: अंधेरे में फुसफुसाहट गाँव पाली एक साधारण भारतीय गाँव था , जो घने और रहस्यमयी कालीघाट जंगल के किनारे बसा हुआ था। यहाँ लोग अपनी खेती - बाड़ी में व्यस्त रहते थे और छोटी - छोटी चीज़ों में खुश रहते थे। लेकिन इन दिनों गाँव की हवा में एक अजीब सा बदलाव महसूस हो रहा था। लोग अब शाम ढलने के बाद अपने घरों से बाहर निकलने से डरते थे। जहाँ पहले रात को झींगुरों की आवाज़ और हल्की हवा चलती थी , वहीं अब एक भयानक खामोशी फैल चुकी थी। ऐसा लगता था मानो खुद रात डर गई हो। सबसे पहले अजीब घटनाएँ रवि के साथ शुरू हुईं। रवि गाँव का एक मेहनती किसान था , जिसने अपनी छोटी सी जमीन पर सालों से खेती की थी। एक शाम , जब वह खेत से घर लौटा , तो उसने पाया कि उसके मवेशी गायब थे। उसकी फसलें , जो एक दिन पहले तक हरी - भरी थीं , अचानक सूख गईं थीं। वह अचंभित होकर इधर - उधर देखता रहा , लेकिन कुछ समझ नहीं आया। थके हुए रवि ने जैसे ही अपने घर का दरवा...